Thursday, January 17, 2019

न दीद है, न सुख़न, अब न हर्फ़ है, न पयाम
कोई भी हीला-ए-तस्कीं नहीं, और आस बहुत है
उम्मीद-ए-यार, नज़र का मिजाज़, दर्द का रंग
तुम आज कुछ भी न पूछो कि दिल उदास बहुत है
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

(दीद= दर्शन, दीदार), (सुख़न = बात-चीत, संवाद, वचन),  (हर्फ़ = अक्षर),  (पयाम = सन्देश), (हीला-ए-तस्कीं = तसल्ली देने का बहाना), (आस = आशा)

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