ज़बान चलने लगी, लब-कुशाई करने लगे
नसीब बिगड़ा तो, गूंगे बुराई करने लगे
हमारे क़द के बराबर न आ सके जो लोग
हमारे पाँव के नीचे खुदाई करने लगे
-विजय तिवारी
(लब-कुशाई = होंठ खुलना)
नसीब बिगड़ा तो, गूंगे बुराई करने लगे
हमारे क़द के बराबर न आ सके जो लोग
हमारे पाँव के नीचे खुदाई करने लगे
-विजय तिवारी
(लब-कुशाई = होंठ खुलना)
No comments:
Post a Comment