Saturday, February 16, 2019

अरे क्या बताएँ हवा-ए-इमकाँ के खेल क्या हैं
कि दिलों में बनता है टूटता है हबाब सा कुछ

(हवा-ए-इमकाँ = सम्भावना/ शक्ति/ सामर्थ की हवा), (हबाब = पानी का बुलबुला)

कभी एक पल भी न साँस ली खुल के हम ने 'बानी'
रहा उम्र भर बस-कि जिस्म ओ जाँ में अज़ाब सा कुछ

(अज़ाब = दुख, कष्ट, संकट, संताप)

-राजेन्द्र मनचंदा बानी

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