Sunday, February 17, 2019

न सुनती है न कहना चाहती है

न सुनती है न कहना चाहती है
हवा इक राज़ रहना चाहती है

न जाने क्या समाई है कि अब की
नदी हर सम्त बहना चाहती है

(सम्त = तरफ़, दिशा की ओर)

सुलगती राह भी वहशत ने चुन ली
सफ़र भी पा-बरहना चाहती है

(पा-बरहना = नंगे पैर)

तअल्लुक़ की अजब दीवानगी है
अब उस के दुख भी सहना चाहती है

उजाले की दुआओं की चमक भी
चराग़-ए-शब में रहना चाहती है

(चराग़-ए-शब = रात का दिया)

भँवर में आँधियों में बादबाँ में
हवा मसरूफ़ रहना चाहती है

(मसरूफ़ = जिसे फुर्सत न हो, काम में लगा हुआ, प्रवृत्त, संलग्न, मश्गूल)

-मंज़ूर हाशमी

No comments:

Post a Comment