न सुनती है न कहना चाहती है
हवा इक राज़ रहना चाहती है
न जाने क्या समाई है कि अब की
नदी हर सम्त बहना चाहती है
(सम्त = तरफ़, दिशा की ओर)
सुलगती राह भी वहशत ने चुन ली
सफ़र भी पा-बरहना चाहती है
(पा-बरहना = नंगे पैर)
तअल्लुक़ की अजब दीवानगी है
अब उस के दुख भी सहना चाहती है
उजाले की दुआओं की चमक भी
चराग़-ए-शब में रहना चाहती है
(चराग़-ए-शब = रात का दिया)
भँवर में आँधियों में बादबाँ में
हवा मसरूफ़ रहना चाहती है
(मसरूफ़ = जिसे फुर्सत न हो, काम में लगा हुआ, प्रवृत्त, संलग्न, मश्गूल)
-मंज़ूर हाशमी
हवा इक राज़ रहना चाहती है
न जाने क्या समाई है कि अब की
नदी हर सम्त बहना चाहती है
(सम्त = तरफ़, दिशा की ओर)
सुलगती राह भी वहशत ने चुन ली
सफ़र भी पा-बरहना चाहती है
(पा-बरहना = नंगे पैर)
तअल्लुक़ की अजब दीवानगी है
अब उस के दुख भी सहना चाहती है
उजाले की दुआओं की चमक भी
चराग़-ए-शब में रहना चाहती है
(चराग़-ए-शब = रात का दिया)
भँवर में आँधियों में बादबाँ में
हवा मसरूफ़ रहना चाहती है
(मसरूफ़ = जिसे फुर्सत न हो, काम में लगा हुआ, प्रवृत्त, संलग्न, मश्गूल)
-मंज़ूर हाशमी
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