नज़र चुरा के वो गुज़रा क़रीब से लेकिन
नज़र बचा के मुझे देखता भी जाता था
ये ख़्वाब ही मिरी तन्हाइयों का हासिल था
ये ख़्वाब ही मिरी तन्हाइयाँ बढ़ाता था
-मुशफ़िक़ ख़्वाजा
नज़र बचा के मुझे देखता भी जाता था
ये ख़्वाब ही मिरी तन्हाइयों का हासिल था
ये ख़्वाब ही मिरी तन्हाइयाँ बढ़ाता था
-मुशफ़िक़ ख़्वाजा
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