कोई ख़ंजर ना किसी तलवार से
हल हुईं हैं मुश्किलें बस प्यार से
क्या बताएं हम इलाजे इश्क़ अब
पूछते हैं वो दवा बीमार से
वो मज़े के दिन वो बचपन अब कहाँ
दिन गुज़रते थे किसी त्यौहार से
ढूंढते दैरो हरम में जो ख़ुदा
अब तलक महरूम हैं दीदार से
(दैरो हरम = मंदिर मस्जिद), (महरूम = वंचित)
क्या मरासिम हैं मेरे तन्हाई से
पूछ लो मेरे दरो दीवार से
(मरासिम = मेल-जोल, प्रेम-व्यवहार, संबंध)
पोछते कब अश्क़ अपनी आँख के
कब मिली फ़ुर्सत हमें घर बार से
है अगर तेरी दुआ में कुछ कमी
फिर सदा आती नहीं उस पार से
(सदा = आवाज़)
किसको फ़ुर्सत कौन पूछे हाल अब
लड़ रहे हैं सब यहाँ किरदार से
मशवरा है आईना मत देखना
कर लिया सौदा अगर दस्तार से
(दस्तार = पगड़ी)
- विकास वाहिद // ०४ -०२ -२०१९
हल हुईं हैं मुश्किलें बस प्यार से
क्या बताएं हम इलाजे इश्क़ अब
पूछते हैं वो दवा बीमार से
वो मज़े के दिन वो बचपन अब कहाँ
दिन गुज़रते थे किसी त्यौहार से
ढूंढते दैरो हरम में जो ख़ुदा
अब तलक महरूम हैं दीदार से
(दैरो हरम = मंदिर मस्जिद), (महरूम = वंचित)
क्या मरासिम हैं मेरे तन्हाई से
पूछ लो मेरे दरो दीवार से
(मरासिम = मेल-जोल, प्रेम-व्यवहार, संबंध)
पोछते कब अश्क़ अपनी आँख के
कब मिली फ़ुर्सत हमें घर बार से
है अगर तेरी दुआ में कुछ कमी
फिर सदा आती नहीं उस पार से
(सदा = आवाज़)
किसको फ़ुर्सत कौन पूछे हाल अब
लड़ रहे हैं सब यहाँ किरदार से
मशवरा है आईना मत देखना
कर लिया सौदा अगर दस्तार से
(दस्तार = पगड़ी)
- विकास वाहिद // ०४ -०२ -२०१९
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