Tuesday, February 26, 2019

मुद्दत में शाम-ए-वस्ल हुई है मुझे नसीब
दो-चार साल तक तो इलाही सहर न हो
-अमीर मीनाई

(शाम-ए-वस्ल = मिलन की शाम), (सहर  = सुबह, सवेरा)

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