Saturday, May 11, 2019

बद-गुमाँ मुझ से न ऐ फ़स्ल-ए-बहाराँ होना

बद-गुमाँ मुझ से न ऐ फ़स्ल-ए-बहाराँ होना
मेरी आदत है ख़िज़ाँ में भी गुल-अफ़शाँ होना

(फ़स्ल-ए-बहाराँ = बहार का मौसम), (ख़िज़ाँ = पतझड़), ( गुल-अफ़शाँ = फूलों का बिखरना)

ये तो मुमकिन है किसी रोज़ ख़ुदा बन जाए
ग़ैर मुमकिन है मगर शैख़ का इंसाँ होना

अपनी वहशत की नुमाइश मुझे मंज़ूर न थी
वर्ना दुश्वार न था चाक-गिरेबाँ होना

रहरव-ए-शौक़ को गुमराह भी कर देता है
बाज़ औक़ात किसी राह का आसाँ होना

(रहरव = पथिक, बटोही, मुसाफ़िर)

क्यूँ गुरेज़ाँ हो मिरी जान परेशानी से
दूसरा नाम है जीने का परेशाँ होना

(गुरेज़ाँ = पलायन, भागना)

जिन को हमदर्द समझते हो हँसेंगे तुम पर
हाल-ए-दिल कह के न ऐ 'शाद' पशीमाँ होना

(पशीमाँ = लज्जित, शर्मिंदा)

-नरेश कुमार शाद

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