Monday, November 25, 2019

समय ने जब भी अंधेरो से दोस्ती की है

समय ने जब भी अंधेरो से दोस्ती की है
जला के अपना ही घर हमने रोशनी की है

सबूत है मेरे घर में धुएं के ये धब्बे
कभी यहाँ पे उजालों ने ख़ुदकुशी की है

ना लड़खडायाँ कभी और कभी ना बहका हूँ 
मुझे पिलाने में  फिर तुमने क्यूँ कमी की है

कभी भी वक़्त ने उनको नहीं मुआफ़ किया
जिन्होंने दुखियों के अश्कों से दिल्लगी की है

(अश्कों = आँसुओं)

किसी के ज़ख़्म को मरहम दिया है गर तूने
समझ ले तूने ख़ुदा की ही बंदगी की है

-गोपालदास नीरज

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