समय ने जब भी अंधेरो से दोस्ती की है
जला के अपना ही घर हमने रोशनी की है
सबूत है मेरे घर में धुएं के ये धब्बे
कभी यहाँ पे उजालों ने ख़ुदकुशी की है
ना लड़खडायाँ कभी और कभी ना बहका हूँ
मुझे पिलाने में फिर तुमने क्यूँ कमी की है
कभी भी वक़्त ने उनको नहीं मुआफ़ किया
जिन्होंने दुखियों के अश्कों से दिल्लगी की है
(अश्कों = आँसुओं)
किसी के ज़ख़्म को मरहम दिया है गर तूने
समझ ले तूने ख़ुदा की ही बंदगी की है
-गोपालदास नीरज
जला के अपना ही घर हमने रोशनी की है
सबूत है मेरे घर में धुएं के ये धब्बे
कभी यहाँ पे उजालों ने ख़ुदकुशी की है
ना लड़खडायाँ कभी और कभी ना बहका हूँ
मुझे पिलाने में फिर तुमने क्यूँ कमी की है
कभी भी वक़्त ने उनको नहीं मुआफ़ किया
जिन्होंने दुखियों के अश्कों से दिल्लगी की है
(अश्कों = आँसुओं)
किसी के ज़ख़्म को मरहम दिया है गर तूने
समझ ले तूने ख़ुदा की ही बंदगी की है
-गोपालदास नीरज
Besst.......parexcella
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