Wednesday, March 25, 2020

रफ़्तार करो कम, के बचेंगे तो मिलेंगे।

रफ़्तार करो कम, के बचेंगे तो मिलेंगे
गुलशन ना रहेगा तो, कहाँ फूल खिलेंगे।

वीरानगी में रह के, ख़ुद से भी मिलेंगे
रह जायें सलामत तो, गुल ख़ुशियों के खिलेंगे।

अब वक़्त आ गया है, कायनात का सोचो
ये रूठ गयी गर, तो ये मौके न मिलेंगे।

जो हो रहा है समझो, क्यों हो रहा है ये
क़ुदरत के बदन को, और कितना ही छीलेंगे।

मौका है अभी देख लो, फिर देर न हो जाए
जो कुदरत को दिए ज़ख़्म, वो हम कैसे सिलेंगे।

है कोई तो जिसने, जहाँ हिला के रख दिया
लगता था कि हमारे बिन, पत्ते न हिलेंगे।

झांको दिलों के अंदर, क्या करना है सोचो
ख़ाक़ में वरना हम, सभी जाके मिलेंगे।

-नामालूम

https://www.youtube.com/watch?v=mmoBj2Fc1tM


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