Monday, March 30, 2020

ध्यान में आ कर बैठ गए हो तुम भी नाँ

ध्यान में आ कर बैठ गए हो तुम भी नाँ
मुझे मुसलसल देख रहे हो तुम भी नाँ

(मुसलसल = लगातार)

दे जाते हो मुझ को कितने रंग नए
जैसे पहली बार मिले हो तुम भी नाँ

हर मंज़र में अब हम दोनों होते हैं
मुझ में ऐसे आन बसे हो तुम भी नाँ

(मंज़र = दृश्य)

इश्क़ ने यूँ दोनों को आमेज़ किया
अब तो तुम भी कह देते हो तुम भी नाँ

(आमेज़ = मिलने वाला, मिलाने वाला)

ख़ुद ही कहो अब कैसे सँवर सकती हूँ मैं
आईने में तुम होते हो तुम भी नाँ

बन के हँसी होंटों पर भी रहते हो
अश्कों में भी तुम बहते हो तुम भी नाँ

मेरी बंद आँखें तुम पढ़ लेते हो
मुझ को इतना जान चुके हो तुम भी नाँ

माँग रहे हो रुख़्सत और ख़ुद ही
हाथ में हाथ लिए बैठे हो तुम भी नाँ

-अंबरीन हसीब अंबर






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