Saturday, April 11, 2020

मैं घुटनें टेक दूँ इतना कभी मजबूर मत करना

मैं घुटनें टेक दूँ इतना कभी मजबूर मत करना
ख़ुदाया थक गई हूँ पर थकन से चूर मत करना

मुझे मालूम है अब मैं किसी की हो नहीं सकती
तुम्हारा साथ गर माँगू तो तुम मंज़ूर मत करना

लो तुम भी देख लो कि मैं कहाँ तक देख सकती हूँ
ये आँखें तुम को देखें तो इन्हें बेनूर मत करना

यहाँ की हूँ वहाँ की हूँ, ख़ुदा जाने कहाँ की हूँ
मुझे दूरी से क़ुर्बत है ये दूरी दूर मत करना

(क़ुर्बत = नज़दीकी)

न घर अपना न दर अपना, जो कमियाँ हैं वो कमियाँ हैं
अधूरेपन की आदी हूँ मुझे भरपूर मत करना

जो शोहरत के लिए गिरना पड़े ख़ुद अपनी नज़रों से
तो फिर मेरे ख़ुदा हरगिज़ मुझे मशहूर मत करना


-दीप्ति मिश्र 

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