Sunday, April 12, 2020

न थी हाल की जब हमें अपने ख़बर, रहे देखते औरों के ऐब ओ हुनर
पड़ी अपनी बुराइयों पर जो नज़र, तो निगाह में कोई बुरा न रहा

'ज़फ़र' आदमी उस को न जानिएगा, वो हो कैसा ही साहब-ए-फ़हम-ओ-ज़का
जिसे ऐश में याद-ए-ख़ुदा न रही, जिसे तैश में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा न रहा

(साहब-ए-फ़हम-ओ-ज़का = समझदार/ पवित्र/ गुणी आदमी), (तैश = गुस्सा, क्रोध)

-बहादुर शाह ज़फ़र

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