Sunday, April 19, 2020

रोज़ जिम्मेदारियाँ बढ़ती गईं

रोज़ जिम्मेदारियाँ बढ़ती गईं।
ज़ीस्त की दुश्वारियाँ बढ़ती गईं।

(ज़ीस्त = जीवन), (दुश्वारियाँ = कठिनाइयाँ)

पेशकदमी वो करे, मैं क्यों बढ़ूँ,
इस अहम में दूरियाँ बढ़ती गईं।

(पेशकदमी = पहल)

आप भी तो ख़ुश नहीं, मैं भी उदास
किसलिये फिर तल्ख़ियाँ बढ़ती गईं।

(तल्ख़ियाँ = कटुतायें)

भूख ले आई शहर में गाँव को,
झुग्गियों पर झुग्गियाँ बढ़ती गईं।

मुस्कराहट सभ्यता का इक फ़रेब,
दिन-ब-दिन ऐय्यारियाँ बढ़ती गईं।

(ऐय्यारियाँ = छल, चाल)

आग से महफ़ूज़ रह पायेगा कौन,
यूँ ही गर चिंगारियाँ बढ़ती गईं।

अम्न के संवाद के साये तले
जंग की तैय्यारियाँ बढ़ती गईं।

- अमिताभ त्रिपाठी 'अमित'

No comments:

Post a Comment