Tuesday, April 28, 2020

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात

(दरख़्शाँ = चमकता हुआ, चमकीला), (हयात = जीवन)

तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है

(ग़म-ए-दहर =दुनिया के दुःख), (आलम = जगत, संसार, दुनिया, अवस्था, दशा, हालत), (सबात = स्थिरता, स्थायित्व, मज़बूती)

तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

(निगूँ  = नीचे होना, झुकना), (वस्ल = मिलन)

अन-गिनत सदियों के तारीक बहीमाना तिलिस्म
रेशम ओ अतलस ओ कमख़ाब में बुनवाए हुए
जा-ब-जा बिकते हुए कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लुथड़े हुए ख़ून में नहलाए हुए

(तारीक = अंधकारमय), (बहीमाना = वहशियाना), (तिलिस्म = जादू, माया, इंद्रजाल), (अतलस = रेशमी वस्त्र),  (कमख़ाब = महँगा कपड़ा), (जा-ब-जा = जगह जगह), (कूचा-ओ-बाज़ार = गली और बाज़ार)

जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे

(अमराज़ = बहुत से रोग), (तन्नूर = Oven), (नासूर = घाव)

और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

https://www.youtube.com/watch?v=B6SSbjcGWOg


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