कुछ नहीं बदला, दीवाने थे दीवाने ही रहे
हम नये शहरों में रहकर भी पुराने ही रहे
दिल की बस्ती में हज़ारों इंक़लाब आये मगर
दर्द के मौसम सुहाने थे सुहाने ही रहे
हमने अपनी सी बहुत की वो नहीं पिघला कभी
उसके होठों पर बहाने थे बहाने ही रहे
ऐ परिंदों हिजरतें करने से क्या हासिल हुआ
चोंच में थे चार दाने, चार दाने ही रहे
-इक़बाल अशहर
(हिजरतें = प्रवास, Migration)
हम नये शहरों में रहकर भी पुराने ही रहे
दिल की बस्ती में हज़ारों इंक़लाब आये मगर
दर्द के मौसम सुहाने थे सुहाने ही रहे
हमने अपनी सी बहुत की वो नहीं पिघला कभी
उसके होठों पर बहाने थे बहाने ही रहे
ऐ परिंदों हिजरतें करने से क्या हासिल हुआ
चोंच में थे चार दाने, चार दाने ही रहे
-इक़बाल अशहर
(हिजरतें = प्रवास, Migration)
Waah kya kehne
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