नज़र जमी है तारों पर
चलना है अंगारों पर
ज़ख़्म दिए सब फूलों ने
तोहमत आई ख़ारों पर
(तोहमत=इल्ज़ाम), (ख़ार=काँटा)
घर, घरवालों ने लूटा
शक है पहरेदारों पर
गुम-सुम पँछी बैठे हैं
सब बिजली के तारों पर
सुर्ख़ लहू के फूल खिले
ज़ंग लगी तलवारों पर
"शाहिद" जितना ख़ून बहा
रंग चढ़ा अख़बारों पर
- शाहिद मीर
No comments:
Post a Comment