तुझे ऐ ज़िंदगी अब आँख भर के देखना है,
तेरी बारीकियों को 'ज़ूम' कर के देखना है
ग़लत इल्ज़ाम कैसे ‘फ़ेस’ करती है हक़ीक़त,
ये ख़ुद पर ही कोई इल्ज़ाम धर के देखना है.
ज़माने का चलन है~ भावनाएँ ‘कैश’ करना,
ज़माने पर भरोसा फिर भी कर के देखना है.
किसी की शख़्सियत का ‘वेट’ है किस-किस के ऊपर ?
पहाड़ों से तराई में उतर के देखना है.
चिता की राख से और क़ब्र की गहराइयों से,
कहाँ जाते हैं सारे लोग, मर के देखना है.
डरा हूँ दोस्तों की भीड़ से अक्सर, मगर अब-
मुझे अपने अकेलेपन से डर के देखना है.
-आलोक श्रीवास्तव
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