Wednesday, December 9, 2020

"फ़िराक़" ने तुझे पूजा नहीं, के वक़्त ना था

"फ़िराक़" ने तुझे पूजा नहीं, के वक़्त ना था
"यगाना" ने भी सराहा नहीं, के वक़्त ना था

"मजाज़" ने तिरे आँचल को, कर दिया परचम
तुझे गले से लगाया नहीं, के वक़्त ना था

(परचम = झंडा)

हज़ार दुःख थे ज़माने के, "फ़ैज़" के आगे
सो तेरे हुस्न पे लिक्खा नहीं, के वक़्त ना था

ब-राह-ए-क़ाफ़िला, चलते चले गए "मजरूह"
तुझे पलट के भी देखा नहीं, के वक़्त ना था

(ब-राह-ए-क़ाफ़िला = क़ाफ़िले के साथ)

ये कौन शोला बदन है, बताओ तो जानी ?
जनाब-ए-"जॉन" ने पूछा नहीं, के वक़्त ना था

वो शाम थी के, सितारे सफ़र के देखते थे
"फ़राज़" ने तुझे चाहा नहीं, के वक़्त ना था

कमाल-ए-इश्क़ था, मेरी निगाह में "आसिम"
ज़वाल-ए-उम्र को सोचा नहीं, के वक़्त ना था

(ज़वाल-ए-उम्र = घटती उम्र)

- लिआक़त अली "आसिम"

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