Sunday, January 3, 2021

पूरा यहाँ का है न मुकम्मल वहाँ का है

पूरा यहाँ का है न मुकम्मल वहाँ का है
ये जो मिरा वजूद है जाने कहाँ का है

क़िस्सा ये मुख़्तसर सफ़र-ए-रायगाँ का है 
हैं कश्तियाँ यक़ीं की समुंदर गुमाँ का है

(मुख़्तसर = थोड़ा, कम, संक्षिप्त), (सफ़र-ए-रायगाँ = व्यर्थ का सफ़र), (गुमाँ = गुमान, घमण्ड, अहँकार)

मौजूद हर जगह है ब-ज़ाहिर कहीं नहीं
हर सिम्त इक निशान किसी बेनिशाँ का है

धुंधले से कुछ नज़ारे उभरते हैं ख़्वाब में
खुलता नहीं है कौन-सा मंज़र कहाँ का है

दीवार-ओ-दर पे सब्ज़ा है और दिल है ज़र्द-ज़र्द
ये मौसम-ए-बहार ही मौसम ख़ज़ाँ का है

(सब्ज़ा = घास), (ख़ज़ाँ = पतझड़)

ह़ैराँ हूंँअपने लब पे तबस्सुम को देखकर
किरदार ये तो और किसी दास्ताँ का है

(तबस्सुम = मुस्कराहट)

दम तोड़ती ज़मीं का है ये आख़िरी बयान
होठों पे उसके नाम किसी आसमाँ का है

जाते हैं जिसमें लोग इबादत के वास्ते
सुनते हैं वो मकान किसी ला-मकाँ का है

(ला-मकाँ = ईश्वर, ख़ुदा)

आँसू को मेरे देखके बोली ये बेबसी
ये लफ़्ज़ तो ह़ुज़ूर हमारी ज़ुबाँ का है

- राजेश रेड्डी

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