स्नेह मिला जो आपका, हुआ मैं भाव विभोर,
खुशियाँ कत्थक नाचतीं मेरे चारों ओर ।
स्मृतियों में आबद्ध हैं चित्र वो शेष, विशेष,
एक नजर में घूँम लें, 'पूरन' भारत देश ।
खेलें, खायें प्रेम से मिलजुल सबके संग,
जीवन का परखा हुआ यही है सुंदर ढंग ।
वक़्त फिसलता ही रहा ज्यों मुट्ठी में रेत,
समय बिता कर आ गए वापस अपने खेत ।
भवसागर हम खे रहे अपनी अपनी नाव,
ना जाने किस नाव पर लगे भँवर का दाँव !
किसको,कितना खेलना सब कुछ विधि के हाथ,
खेल खतम और चल दिये लेकर स्मृतियाँ साथ !
-पूरन भट्ट
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