Saturday, March 27, 2021

समंदर हो ज़मीं हो इसको दफ़नाया नहीं जाता।
मियां हरगिज़ कभी भी सच को झुठलाया नहीं जाता।।

अकेले ही पहुंचना है हमें उस आख़री मंज़िल
किसी का चाह कर भी साथ में साया नहीं जाता।

पहेली सा बुना है ज़िन्दगी ने हर हसीं रिश्ता
उलझ जाए सिरा कोई तो सुलझाया नहीं जाता।

हमारे ख़ून में शामिल है हरदम ये रविश "वाहिद"
पनाहों में कोई आए तो ठुकराया नहीं जाता।

(रविश =  गति, रंग-ढंग, बाग़ की क्यारियों के बीच का छोटा मार्ग)

- विकास वाहिद
26/03/21

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