माना के तिरा फ़ैज़ अभी, आम नहीं है
क्या "क़ैस" की ख़ातिर भी, कोई जाम नहीं है ?
(फ़ैज़ = लाभ, उपकार, कृपा)
मेरी ये शिकायत के मुझे, टाल रहे हैं
उनका ये बहाना के अभी, शाम नहीं है
दिन भर तिरी यादें हैं तो, शब भर तिरे सपने
दीवाने को अब और कोई, काम नहीं है
वो दिल ही नहीं जिस में तिरी, याद नहीं है
वो लब ही नहीं जिस पे तिरा, नाम नहीं है
अपनों से शिकायत है ना, ग़ैरों से गिला है
तक़दीर ही ऐसी है कि, आराम नहीं है
ये "क़ैस"-ए-बला-नोश भी, क्या चीज़ है, यारों
बद-क़ौल है, बद-फ़ेल है, बद-नाम नहीं है
("क़ैस"-ए-बला-नोश = शराबी "क़ैस"), (बद-क़ौल = बुरा बोलने वाला), (बद-फ़ेल = बुरे काम करने वाला)
राजकुमार "क़ैस"
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