Sunday, July 18, 2021

निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ मिले मिले न मिले 
मज़े की चीज़ है ये ज़ौक़-ए-जुस्तुजू मेरा 
-वहशत रज़ा अली कलकत्वी

(निशान-ए-मंज़िल-ए-जानाँ = प्रियतम की मंज़िल का पता), (ज़ौक़-ए-जुस्तुजू = खोज/ तलाश का आनंद)

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