तुम्हें इश्क़ जब सूफ़ियाना लगेगा
हरिक शख़्स फिर आशिकाना लगेगा।
ये सांसें हैं जब तक ही दुश्वारियां हैं
सफ़र उसके आगे सुहाना लगेगा।
मयस्सर हूँ मैं मुस्कुराता हुआ पर
मुझे इक हँसी का बयाना लगेगा।
(मयस्सर = उपलब्ध)
कभी इससे बाहर निकल के तो देखो
तुम्हें जिस्म इक क़ैदख़ाना लगेगा।
निसाबों में होंगीं जहां नफ़रतें हीं
वहीं ज़हर का कारख़ाना लगेगा।
(निसाब = पाठ्यक्रम)
तलाशेंगे पहले वो कांधा हमारा
कहीं जा के तब फिर निशाना लगेगा।
ख़ुद अपना गुनाहगार हूँ मैं सो मुझको
तसल्ली किसी की, न शाना लगेगा।
(शाना = कंधा)
- विकास वाहिद
No comments:
Post a Comment