हाए लोगों की करम-फरमाइयाँ
तोहमतें, बदनामियाँ, रूसवाइयाँ
ज़िंदगी शायद इसी का नाम है
दूरियाँ, मजबूरियाँ, तन्हाइयाँ
क्या ज़माने में यूँ ही कटती है रात
करवटें, बेताबियाँ, अँगड़ाइयाँ
क्या यही होती है शाम-ए-इंतिज़ार
आहटें, घबराहटें, परछाइयाँ
एक रिंद-ए-मस्त की ठोकर में है
शाहियाँ, सुल्तानियाँ, दाराइयाँ
[(रिंद = शराबी), (दाराई = बादशाहत)]
एक पैकर में सिमट कर रह गई
खूबियाँ, ज़ेबाइयाँ, रानाइयाँ
[(पैकर = चेहरा, मुख), (ज़ेबा = शोभा देने वाला), (रानाई = बनाव-श्रृंगार)]
रह गई एक तिफ़्ल-ए-मक़तब के हुजूर
हिकमतें, आगाहियाँ, दानाइयाँ
[(तिफ़्ल-ए-मक़तब = बच्चों की पाठशाला), (हिकमत = विद्या, तत्वज्ञान), (आगाहियाँ = जानकारियां, सूचनाएँ), (दानाई = बुद्धिमत्ता, अक्लमंदी)]
ज़ख्म दिल के फिर हरे करने लगी
बदलियाँ, बरखा रूतें, पुरवाइयाँ
दीदा-ओ-दानिस्ता उन के सामने
लग्ज़िशें, नाकामियाँ, पसपाइयाँ
[(दीदा-ओ-दानिस्ता = देख और समझकर, जानबूझ कर), (लग्ज़िशें = गलतियाँ, भूलें), (पसपाइयाँ = पराजय)]
मेरे दिल की धड़कनों में ढल गई
चूड़ियाँ, मौसीकियाँ, शहनाइयाँ
उनसे मिलकर और भी कुछ बढ़ गई
उलझनें, फिक्रें, कयास-आराइयाँ
(कयास-आराइयाँ = अनुमान/ अटकलें लगाना)
'कैफ़' पैदा कर समुंदर की तरह
वुसअतें, ख़ामोशियाँ, गहराइयाँ
(वुसअत = विस्तार, शक्ति, सामर्थ्य)
-कैफ़ भोपाली
तोहमतें, बदनामियाँ, रूसवाइयाँ
ज़िंदगी शायद इसी का नाम है
दूरियाँ, मजबूरियाँ, तन्हाइयाँ
क्या ज़माने में यूँ ही कटती है रात
करवटें, बेताबियाँ, अँगड़ाइयाँ
क्या यही होती है शाम-ए-इंतिज़ार
आहटें, घबराहटें, परछाइयाँ
एक रिंद-ए-मस्त की ठोकर में है
शाहियाँ, सुल्तानियाँ, दाराइयाँ
[(रिंद = शराबी), (दाराई = बादशाहत)]
एक पैकर में सिमट कर रह गई
खूबियाँ, ज़ेबाइयाँ, रानाइयाँ
[(पैकर = चेहरा, मुख), (ज़ेबा = शोभा देने वाला), (रानाई = बनाव-श्रृंगार)]
रह गई एक तिफ़्ल-ए-मक़तब के हुजूर
हिकमतें, आगाहियाँ, दानाइयाँ
[(तिफ़्ल-ए-मक़तब = बच्चों की पाठशाला), (हिकमत = विद्या, तत्वज्ञान), (आगाहियाँ = जानकारियां, सूचनाएँ), (दानाई = बुद्धिमत्ता, अक्लमंदी)]
ज़ख्म दिल के फिर हरे करने लगी
बदलियाँ, बरखा रूतें, पुरवाइयाँ
दीदा-ओ-दानिस्ता उन के सामने
लग्ज़िशें, नाकामियाँ, पसपाइयाँ
[(दीदा-ओ-दानिस्ता = देख और समझकर, जानबूझ कर), (लग्ज़िशें = गलतियाँ, भूलें), (पसपाइयाँ = पराजय)]
मेरे दिल की धड़कनों में ढल गई
चूड़ियाँ, मौसीकियाँ, शहनाइयाँ
उनसे मिलकर और भी कुछ बढ़ गई
उलझनें, फिक्रें, कयास-आराइयाँ
(कयास-आराइयाँ = अनुमान/ अटकलें लगाना)
'कैफ़' पैदा कर समुंदर की तरह
वुसअतें, ख़ामोशियाँ, गहराइयाँ
(वुसअत = विस्तार, शक्ति, सामर्थ्य)
-कैफ़ भोपाली
No comments:
Post a Comment