Saturday, August 16, 2014

सहर को सहर, रात को रात लिख
सुखनवर हमेशा सही बात लिख।

(सहर = सुबह)

ज़रूरी नहीं झूठ का हो बखान
नज़र में हैं जैसे वो हालात लिख।

अगर धूप है तो लिखी जाय धूप
नहीं तो तू मौसम को बरसात लिख।

अधूरी रही या मुकम्मल हुई
थी जैसी भी वैसी मुलाकात लिख।

ये अच्छा है चलती रहे लेखनी
मगर बेवजह मत खुरापात लिख।

-आशीष नैथानी 'सलिल'

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