शहर जाना तो बस इक बहाना हुआ
वाकई गाँव मेरा पुराना हुआ |
बज रही साँकलें, गा रही कोयलें
ऐसे सपनों को भी अब ज़माना हुआ |
ये तकाज़ा है इस दर्द का जानकर
मेरा अंदाज़ भी शायराना हुआ |
हो गया कुछ इज़ाफ़ा मेरी अक्ल में
"जब से गैरों के घर आना-जाना हुआ |"
भूख ने रातभर आँख लगने न दी
एक मासूम जल्दी सयाना हुआ |
अपने बच्चे को कहता है बेकार कौन
आखिर अपना खज़ाना, खज़ाना हुआ |
वक्त के साथ हम भी बदल जाएँगे
हम परिंदों का कब इक ठिकाना हुआ |
-आशीष नैथानी 'सलिल'
वाकई गाँव मेरा पुराना हुआ |
बज रही साँकलें, गा रही कोयलें
ऐसे सपनों को भी अब ज़माना हुआ |
ये तकाज़ा है इस दर्द का जानकर
मेरा अंदाज़ भी शायराना हुआ |
हो गया कुछ इज़ाफ़ा मेरी अक्ल में
"जब से गैरों के घर आना-जाना हुआ |"
भूख ने रातभर आँख लगने न दी
एक मासूम जल्दी सयाना हुआ |
अपने बच्चे को कहता है बेकार कौन
आखिर अपना खज़ाना, खज़ाना हुआ |
वक्त के साथ हम भी बदल जाएँगे
हम परिंदों का कब इक ठिकाना हुआ |
-आशीष नैथानी 'सलिल'
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