Saturday, August 16, 2014

शहर जाना तो बस इक बहाना हुआ
वाकई गाँव मेरा पुराना हुआ |

बज रही साँकलें, गा रही कोयलें
ऐसे सपनों को भी अब ज़माना हुआ |

ये तकाज़ा है इस दर्द का जानकर
मेरा अंदाज़ भी शायराना हुआ |

हो गया कुछ इज़ाफ़ा मेरी अक्ल में
"जब से गैरों के घर आना-जाना हुआ |"

भूख ने रातभर आँख लगने न दी
एक मासूम जल्दी सयाना हुआ |

अपने बच्चे को कहता है बेकार कौन
आखिर अपना खज़ाना, खज़ाना हुआ |

वक्त के साथ हम भी बदल जाएँगे
हम परिंदों का कब इक ठिकाना हुआ |

-आशीष नैथानी 'सलिल'

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