ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ सुन न जुनूँ रहा न परी रही
न तो तू रहा न तो मैं रहा जो रही सो बेख़बरी रही
(तहय्युर = विस्मय, हैरत), (ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ = प्रेम के विस्मय की जागरूकता, Aware of wonder of love), (जुनूँ = जूनून, पागलपन, दीवानगी)
शह-ए-बेख़ुदी ने अता किया मुझे अब लिबास-ए-बरहनगी
न ख़िरद की बख़िया-गरी रही न जुनूँ की पर्दा-दरी रही
(शह-ए-बेख़ुदी = बेख़बरी का राजा), (अता किया = प्रदान किया), (लिबास-ए-बरहनगी = नग्नता का लिबास), (ख़िरद = बुद्धि, चतुराई), (बख़िया-गरी = सिलाई करना), (जुनूँ = जूनून, पागलपन, दीवानगी), (पर्दा-दरी = बिना परदे के, पर्दा हटाना)
चली सम्त-ए-ग़ैब सी क्या हवा कि चमन ज़ुहूर का जल गया
मगर एक शाख़-ए-निहाल-ए-ग़म जिसे दिल कहो सो हरी रही
(सम्त-ए-ग़ैब = अदृश्य की ओर), (चमन = बग़ीचा), (ज़ुहूर = उत्पत्ति, आविर्भाव, प्रकट), (शाख़-ए-निहाल-ए-ग़म = दुःख के पौधे की डाली)
नज़र-ए-तग़ाफुल-ए-यार का गिला किस ज़बाँ सीं बयाँ करूँ
कि शराब-ए-सद-क़दह-ए-आरज़ू ख़म-ए-दिल में थी सो भरी रही
(नज़र-ए-तग़ाफुल-ए-यार = प्रिय की उपेक्षा भरी नज़र), (गिला = शिकायत), (शराब-ए-सद-क़दह-ए-आरज़ू = सौ शराब के गिलासों सी इच्छाएँ), (ख़म-ए-दिल = दिल का विकार)
वो अजब घड़ी थी मैं जिस घड़ी लिया दर्स नुस्ख़ा-ए-इश्क़ का
कि किताब अक्ल की ताक़ में जूँ धरी थी त्यूँ ही धरी रही
(दर्स = अध्यन, उपदेश, नसीहत)
तिरे जोश-ए-हैरत-ए-हुस्न का असर इस क़दर सीं यहाँ हुआ
कि न आइने में रही जिला न परी कूँ जलवा-गरी रही
(जिला = चमक-दमक), (कूँ = को), (जलवा-गरी = बनाव-श्रृंगार के साथ उपस्थिति)
किया ख़ाक आतिश-ए-इश्क़ ने दिल-ए-बेनवा-ए-'सिराज' कूँ
न ख़तर रहा न हज़र रहा मगर एक बे-ख़तरी रही
(आतिश-ए-इश्क़ = प्रेम की चिंगारी), (बेनवा = दरिद्र), (दिल-ए-बेनवा-ए-'सिराज' = सिराज (शायर) के दरिद्र दिल को), (ख़तर = ख़तरा, आशंका), (हज़र = भय, डर, बचाव), (बे-ख़तरी = बिना ख़तरे के)
-'सिराज' औरंगाबादी
न तो तू रहा न तो मैं रहा जो रही सो बेख़बरी रही
(तहय्युर = विस्मय, हैरत), (ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ = प्रेम के विस्मय की जागरूकता, Aware of wonder of love), (जुनूँ = जूनून, पागलपन, दीवानगी)
शह-ए-बेख़ुदी ने अता किया मुझे अब लिबास-ए-बरहनगी
न ख़िरद की बख़िया-गरी रही न जुनूँ की पर्दा-दरी रही
(शह-ए-बेख़ुदी = बेख़बरी का राजा), (अता किया = प्रदान किया), (लिबास-ए-बरहनगी = नग्नता का लिबास), (ख़िरद = बुद्धि, चतुराई), (बख़िया-गरी = सिलाई करना), (जुनूँ = जूनून, पागलपन, दीवानगी), (पर्दा-दरी = बिना परदे के, पर्दा हटाना)
चली सम्त-ए-ग़ैब सी क्या हवा कि चमन ज़ुहूर का जल गया
मगर एक शाख़-ए-निहाल-ए-ग़म जिसे दिल कहो सो हरी रही
(सम्त-ए-ग़ैब = अदृश्य की ओर), (चमन = बग़ीचा), (ज़ुहूर = उत्पत्ति, आविर्भाव, प्रकट), (शाख़-ए-निहाल-ए-ग़म = दुःख के पौधे की डाली)
नज़र-ए-तग़ाफुल-ए-यार का गिला किस ज़बाँ सीं बयाँ करूँ
कि शराब-ए-सद-क़दह-ए-आरज़ू ख़म-ए-दिल में थी सो भरी रही
(नज़र-ए-तग़ाफुल-ए-यार = प्रिय की उपेक्षा भरी नज़र), (गिला = शिकायत), (शराब-ए-सद-क़दह-ए-आरज़ू = सौ शराब के गिलासों सी इच्छाएँ), (ख़म-ए-दिल = दिल का विकार)
वो अजब घड़ी थी मैं जिस घड़ी लिया दर्स नुस्ख़ा-ए-इश्क़ का
कि किताब अक्ल की ताक़ में जूँ धरी थी त्यूँ ही धरी रही
(दर्स = अध्यन, उपदेश, नसीहत)
तिरे जोश-ए-हैरत-ए-हुस्न का असर इस क़दर सीं यहाँ हुआ
कि न आइने में रही जिला न परी कूँ जलवा-गरी रही
(जिला = चमक-दमक), (कूँ = को), (जलवा-गरी = बनाव-श्रृंगार के साथ उपस्थिति)
किया ख़ाक आतिश-ए-इश्क़ ने दिल-ए-बेनवा-ए-'सिराज' कूँ
न ख़तर रहा न हज़र रहा मगर एक बे-ख़तरी रही
(आतिश-ए-इश्क़ = प्रेम की चिंगारी), (बेनवा = दरिद्र), (दिल-ए-बेनवा-ए-'सिराज' = सिराज (शायर) के दरिद्र दिल को), (ख़तर = ख़तरा, आशंका), (हज़र = भय, डर, बचाव), (बे-ख़तरी = बिना ख़तरे के)
-'सिराज' औरंगाबादी
आबिदा परवीन/ Abida Parveen
Thanks.....i love this gazhal very much
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