शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आके टल गई
दिल था के फिर बहल गया, जाँ थी के फिर सम्भल गई
(फ़िराक़ - वियोग, विरह, जुदाई), (शाम-ए-फ़िराक़ = वियोग की शाम)
बज़्म-ए-ख़्याल में तेरे हुस्न की शमा जल गई
दर्द का चाँद बुझ गया, हिज्र की रात ढल गई
[(बज़्म-ए-ख़्याल = कल्पना की महफ़िल), (हिज्र = बिछोह, जुदाई)]
जब तुझे याद कर लिया, सुबह महक महक उठी
जब तेरा ग़म जगा लिया, रात मचल मचल गई
दिल से तो हर मुआमला करके चले थे साफ़ हम
कहने में उनके सामने बात बदल बदल गई
आख़िर-ए-शब के हमसफ़र 'फ़ैज़' न जाने क्या हुए
रह गई किस जगह सबा, सुबह किधर निकल गई
(सबा = हवा)
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
दिल था के फिर बहल गया, जाँ थी के फिर सम्भल गई
(फ़िराक़ - वियोग, विरह, जुदाई), (शाम-ए-फ़िराक़ = वियोग की शाम)
बज़्म-ए-ख़्याल में तेरे हुस्न की शमा जल गई
दर्द का चाँद बुझ गया, हिज्र की रात ढल गई
[(बज़्म-ए-ख़्याल = कल्पना की महफ़िल), (हिज्र = बिछोह, जुदाई)]
जब तुझे याद कर लिया, सुबह महक महक उठी
जब तेरा ग़म जगा लिया, रात मचल मचल गई
दिल से तो हर मुआमला करके चले थे साफ़ हम
कहने में उनके सामने बात बदल बदल गई
आख़िर-ए-शब के हमसफ़र 'फ़ैज़' न जाने क्या हुए
रह गई किस जगह सबा, सुबह किधर निकल गई
(सबा = हवा)
-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
फ़रीदा ख़ानम
आबिदा परवीन/ Abida Parveen
बेगम अख़्तर
जगजीत सिंह
बेहतरीन पेशकश ..!!
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