Monday, October 20, 2014

वो जिसकी दीद में लाखों मसर्रतें पिन्हाँ

वो जिसकी दीद में लाखों मसर्रतें पिन्हाँ
वो हुस्न जिसकी तमन्ना में जन्नतें पिन्हाँ

 (दीद= दर्शन, दीदार), (मसर्रतें = ख़ुशियाँ), (पिन्हाँ = आंतरिक, छिपा हुआ)

हज़ार फ़ित्ने, तहे-पा-ए-नाज़ ख़ाकनशीं
हर एक निगाह ख़ुमारे-शबाब से रंगीं

(फ़ित्ने = उपद्रव), (तहे-पा-ए-नाज़ = सुंदरता/नाज़ो-अदा/ मान-अभिमान के पैर के नीचे), (ख़ाकनशीं = दीन, दुखी, लाचार), (ख़ुमारे-शबाब = यौवन-मद)

शबाब, जिससे तख़य्युल पे बिजलियाँ बरसें
वक़ार जिसकी रफ़ाक़त को शोख़ियाँ तरसें

(तख़य्युल = कल्पना), (वक़ार = गरिमा, प्रतिष्ठा, सम्मान, मान-मर्यादा), (रफ़ाक़त = मैत्री, दोस्ती, संगत, साथ)

अदा-ए-लग़्ज़िशे-पा पर क़यामतें क़ुर्बां
बयाज़े-रुख़ पे सहर की सबाहतें क़ुर्बां

(अदा-ए-लग़्ज़िशे-पा = पैरों के डगमगाने की अदा), (बयाज़े-रुख़ = चेहरे का गोरा रंग), (सहर = सुबह), (सबाहतें = सफ़ेदी, रौशनी, सुंदरता)

सियाह ज़ुल्फ़ों में वारफ़्ता नकहतों का हुजूम
तवील रातों की ख़्वाबीदा राहतों का हुजूम

(सियाह = काली), (वारफ़्ता = खोया हुआ, आत्मविस्मृत, बेसुध, बेख़ुद), (नकहतों = सुगंध, ख़ुशबू), (हुजूम = जान-समूह, भीड़-भाड़)

 (तवील = लम्बी), (ख़्वाबीदा =सोई हुई, सुप्त)

वो आँख जिसके बनाव पे ख़ालिक इतराये
ज़बाने-शे’र को तारीफ़ करते शर्म आये

(ख़ालिक = सृष्टा)

वो होंठ, फ़ैज़ से जिनके, बहारे-लालःफरोश
बहिश्त-ओ-कौसर-ओ-तसनीम-ओ-सलसबील ब-दोश

(फ़ैज़ = दानशीलता), (बहारे-लालःफरोश = लाल फूल बेचने वाली बहारें), (बहिश्त-ओ-कौसर-ओ-तसनीम-ओ-सलसबील = जन्नत और उसकी नहरें), (ब-दोश = कंधे पर लिए हुए)

गुदाज़-जिस्म, क़बा जिस पे सज के नाज़ करे
दराज़ क़द जिसे सर्वे-सही नमाज़ करे

(गुदाज़ = मृदुल, मांसल), (क़बा = एक प्रकार का लम्बा ढीला पहनावा), (दराज़ = लंबा), (सर्वे-सही = सर्व के सीधे पेड़)

ग़रज़ वो हुस्न जो मोहताज-ए-वस्फ़-ओ-नाम नहीं
वो हुस्न जिसका तस्सवुर बशर का काम नहीं

(मोहताज-ए-वस्फ़-ओ-नाम = परिचय या नाम का मुहताज), (तस्सवुर = कल्पना, ख़याल), (बशर = मनुष्य, इंसान)

किसी ज़माने में इस रहगुज़र से गुज़रा था
ब-सद-ग़ुरूरो-तजम्मुल इधर से गुज़रा था

(ब-सद-ग़ुरूरो-तजम्मुल = सैकड़ों अभिमान और सौंदर्य/ हुस्न लेकर)

और अब ये राहगुज़र भी है दिलफ़रेब-ओ-हसीं
है इसकी ख़ाक मे कैफ़-ए-शराब-ओ-शे’र मकीं

(कैफ़-ए-शराब-ओ-शे’र = मदिरा और कविता की मादकता), (मकीं = बसा हुआ)

हवा मे शोख़ी-ए-रफ़्तार की अदाएँ हैं
फ़ज़ा मे नर्मी-ए-गुफ़्तार की सदाएँ हैं

(शोख़ी-ए-रफ़्तार = चाल की चंचलता), (नर्मी-ए-गुफ़्तार = वाणी की कोमलता), (सदाएँ = आवाज़ें)

गरज़ वो हुस्न अब इस राह का ज़ुज़्वे-मंज़र है
नियाज़-ए-इश्क़ को इक सज्दागाह मयस्सर है

(ज़ुज़्वे-मंज़र = दृश्य का अंश), (नियाज़-ए-इश्क़ = प्रेम की कामना)

-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़


आबिदा परवीन/ Abida Parveen



1 comment:

  1. बहुत सुन्दर ।इतना अच्छी तरह से कभी अर्थ स्पष्ट नहीं हुआ। आभार।

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