Saturday, January 23, 2016

ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया

ख़ातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूठी क़सम से आपका ईमान तो गया

दिल ले के मुफ़्त कहते हैं कुछ काम का नहीं
उल्टी शिक़ायतें रहीं एहसान तो गया

डरता हूँ देख कर दिल-ए-बेआरज़ू को मैं
सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गया

(दिल-ए-बेआरज़ू = बिना इच्छाओं का दिल)

क्या आई राहत आई जो कुंज-ए-मज़ार में
वो वलवला वो शौक़ वो अरमान तो गया

(कुंज-ए-मज़ार = कब्र का कोना, कब्र का एकांत स्थान), (वलवला = उत्साह, उमंग, जोश)

देखा है बुतकदे में जो ऐ शेख कुछ न पूछ
ईमान की तो ये है कि ईमान तो गया

(बुतकदा = मंदिर)

इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ में गो ज़िल्लतें हुईं
लेकिन उसे जता तो दिया जान तो गया

(इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ = प्रेम के रहस्य को प्रकट या ज़ाहिर करना), (ज़िल्लतें = तिरस्कार, अपमान, अनादर)

गो नामाबर से कुछ न हुआ पर हज़ार शुक्र
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया

(नामाबर = पत्रवाहक, संदेशवाहक)

बज़्म-ए-अदू में सूरत-ए-परवाना मेरा दिल
गो रश्क़ से जला तिरे क़ुर्बान तो गया

(बज़्म-ए-अदू = दुश्मन की महफ़िल), (रश्क़ = ईर्ष्या, जलन)

होश-ओ-हवास-ओ-ताब-ओ-तवाँ 'दाग़' जा चुके
अब हम भी जाने वाले हैं सामान तो गया

(ताब-ओ-तवाँ = तेज और बल)

-दाग़ देहलवी



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