Tuesday, January 12, 2016

है तेरा आँचल भी कुछ बहका हुआ

है तेरा आँचल भी कुछ बहका हुआ
और तूफ़ाँ दिल में भी मचला हुआ

दूर तक इक बाँसुरी की गूँज है
और हर इक स्वर भी है महका हुआ

चल उसी दरिया में कश्ती डाल दें
आजकल जो है बहुत उफना हुआ

उड रहा है बादलों के दरमियाँ
ये ज़हन अब किस कदर हल्का हुआ

हर नज़ारा क्यों नई इस राह का
लग रहा ज्यों है कहीं देखा हुआ

झूम कर गाता यक़ीनों का चमन
चाहतों की धूप में निखरा हुआ

डूबना ही है तो फिर क्या सोचना
ताल, सागर या वो इक दरिया हुआ

वो ' सुमन' चेहरा वो आँखों की हँसी
मन भ्रमर उस रूप पर पगला हुआ

-लक्ष्मी खन्ना ' सुमन'

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