Saturday, January 9, 2016

डूबती कश्तियाँ थीं टूटते तारे थे कई

डूबती कश्तियाँ थीं टूटते तारे थे कई
हम ही कुछ समझे नहीं वरना इशारे थे कई

(कश्ती = नाव)

ये अलग बात कि तिनके भी किनारा कर गए
डूबने वाले ने तो नाम पुकारे थे कई

उम्र भर हमको भी करना था वो ही कारोबार
फ़ायदा एक ना था जिसमें ख़सारे थे कई

(ख़सारा = घाटा, नुकसान, हानि)

जिस्म के साथ कहाँ बुझ सके अपने अरमां
राख को अपनी कुरेदा तो शरारे थे कई

(शरारे = चिंगारियाँ)

बारहा ख़ुद को ही पहचानना मुश्किल गुज़रा
नाम तो एक ही था रूप हमारे थे कई

(बारहा = कई बार, अक्सर)

हम को साहिल पे जो ले जाती वही मौज ना थी
यूँ तो दरिया में भटकते हुए धारे थे कई

(साहिल = किनारा)

तेरे बन्दों में सभी तेरे परस्तार न थे
थे ग़रज़मंद कई, ख़ौफ़ के मारे थे कई

(परस्तार = पूजा या उपासना करने वाला)

-राजेश रेड्डी

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