Friday, January 8, 2016

ज़िन्दगी होम कर दी गुलों के लिये
और तरसते रहे खुशबुओं के लिए

(गुलों = फूलों)

सबको अपने लिये रौशनी चाहिये
कोई जलता नहीं दूसरों के लिये

-हस्तीमल 'हस्ती'

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