Saturday, February 27, 2016

जाना तो बहुत दूर है महताब के आगे

जाना तो बहुत दूर है महताब के आगे
बढ़ते ही नहीं पाँव तिरे ख़्वाब से आगे

(महताब = चन्दमा, चाँद)

कुछ और हसीं मोड़ थे रूदाद-ए-सफ़र में
लिक्खा न मगर कुछ भी तिरे बाब से आगे

(रूदाद-ए-सफ़र = यात्रा का विवरण/ वृतांत), (बाब = किताब का अध्याय, परिच्छेद)

तहज़ीब की ज़ंजीर में उलझा रहा मैं भी
तू भी न बढ़ा जिस्म के आदाब से आगे

(आदाब = शिष्टाचार, सभ्यता)

मोती के ख़ज़ाने भी तह-ए-आब छुपे थे
निकला न कोई ख़तरा-ए-गिर्दाब से आगे

(तह-ए-आब = पानी के अंदर), (ख़तरा-ए-गिर्दाब = पानी के भंवर का ख़तरा)

देखो तो कभी दश्त भी आबाद है कैसा
निकलो तो ज़रा ख़ित्ता-ए-शादाब से आगे

(दश्त = जंगल), (ख़ित्ता-ए-शादाब = हरा भरा इलाका)

बिछड़ा तो नहीं कोई तुम्हारा भी सफ़र में
क्यूँ भागे चले जाते हो बेताब से आगे

दुनिया का चलन देख के लगता तो यही है
अब कुछ भी नहीं आलम-ए-असबाब से आगे

(आलम-ए-असबाब = जहाँ हर कार्य के लिए कुछ कारण अवश्य हो, वजह/ कारण और परिणाम की दुनिया)

- आलम खुर्शीद

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