Wednesday, February 24, 2016

क़ुर्बतो के बीच जैसे फ़ासला रहने लगे

क़ुर्बतों के बीच जैसे फ़ासला रहने लगे
यूँ किसी के साथ रहकर हम जुदा रहने लगे

(क़ुर्बतों = निकटता, सामीप्य)

किस भरोसे पर किसी से आश्नाई कीजिये
आश्ना चेहरे भी तो नाआश्ना रहने लगे

(आश्नाई = मैत्री, दोस्ती), (आश्ना = मित्र, दोस्त, परिचित), (नाआश्ना = अपरिचित, नावाक़िफ़, अनभिज्ञ)

हर सदा ख़ाली मकानों से पलट आने लगी
क्या पता अब किस जगह अहले-वफ़ा रहने लगे

(सदा = आवाज़), (अहले-वफ़ा = वफ़ा करने वाले)

रंग-ओ-रौगन बाम-ओ-दर के उड़ ही जाते हैं जनाब
जब किसी के घर में कोई दूसरा रहने लगे

(बाम-ओ-दर = छत और दरवाज़ा)

हिज्र कि लज़्ज़त जरा उस के मकीं से पूछिये
हर घड़ी जिस घर का दरवाज़ा खुला रहने लगे

(हिज्र = बिछोह, जुदाई), (लज़्ज़त = आनंद), (मकीं = मकान में रहने वाला, निवासी)

इश्क़ में तहज़ीब के हैं और ही कुछ सिलसिले
तुझ से हो कर हम ख़फ़ा, खुद से ख़फ़ा रहने लगे

फिर पुरानी याद कोई दिल में यूँ रहने लगी
इक खंडहर में जिस तरह जलता दिया रहने लगे

आसमाँ से चाँद उतरेगा भला क्यों ख़ाक पर
तुम भी 'आलम' वाहमों में मुब्तला रहने लगे

(वाहमों = कल्पनाओं, भ्रमों), (मुब्तला = ग्रस्त, जकड़ा हुआ, फँसा हुआ मुग्ध, आसक्त)

- आलम खुर्शीद

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