इसी हवस में तो हम लोग अपने बस में नहीं
हमें वो चाहिए जो अपनी दस्तरस में नहीं
(हवस = लालच , पिपासा), (दस्तरस = पहुँच)
ये बात कौन बताये हरीस लोगों को
क़नाअतों सा मज़ा लज़्ज़ते-हवस में नहीं
(हरीस = लालची), (क़नाअत = संतोष)
- आलम खुर्शीद
हमें वो चाहिए जो अपनी दस्तरस में नहीं
(हवस = लालच , पिपासा), (दस्तरस = पहुँच)
ये बात कौन बताये हरीस लोगों को
क़नाअतों सा मज़ा लज़्ज़ते-हवस में नहीं
(हरीस = लालची), (क़नाअत = संतोष)
- आलम खुर्शीद
किन शब्दों में आप का शुक्रिया अदा करूँ मेरे भाई !!!
ReplyDeleteकितनी मेहनत करते हैं आप !!! हैरानी होती है देख कर !
ईश्वर आप को अच्छा और खुश रखे !
______________
एक ग़ज़ल का मतला कुछ गलत कम्पोज़ हो गया है . उसमें एक शब्द "क्यूँ" छूट गया है . खैर! अब उसे यूँ कर दें प्लीज़
हमारे घर पे ही क्यूँ वक्त तलवार गिरती है
कभी छत बैठ जाती है कभी दीवार गिरती है
-----------------आलम खुरशीद