Wednesday, February 24, 2016

इसी हवस में तो हम लोग अपने बस में नहीं
हमें वो चाहिए जो अपनी दस्तरस में नहीं

(हवस = लालच , पिपासा), (दस्तरस = पहुँच)

ये बात कौन बताये हरीस लोगों को
क़नाअतों सा मज़ा लज़्ज़ते-हवस में नहीं

(हरीस = लालची), (क़नाअत = संतोष)

- आलम खुर्शीद

1 comment:

  1. किन शब्दों में आप का शुक्रिया अदा करूँ मेरे भाई !!!
    कितनी मेहनत करते हैं आप !!! हैरानी होती है देख कर !
    ईश्वर आप को अच्छा और खुश रखे !
    ______________
    एक ग़ज़ल का मतला कुछ गलत कम्पोज़ हो गया है . उसमें एक शब्द "क्यूँ" छूट गया है . खैर! अब उसे यूँ कर दें प्लीज़

    हमारे घर पे ही क्यूँ वक्त तलवार गिरती है
    कभी छत बैठ जाती है कभी दीवार गिरती है
    -----------------आलम खुरशीद

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