Wednesday, March 16, 2016

सितम ज़ाहिर, जफ़ा साबित, मुसल्लम बेवफ़ा तुम हो

सितम ज़ाहिर, जफ़ा साबित, मुसल्लम बेवफ़ा तुम हो
किसी को फिर भी प्यार आये तो क्या समझें के क्या तुम हो

(जफ़ा = सख्ती, जुल्म, अत्याचार), (मुसल्लम = माना हुआ, पूरा)

चमन में इख़्तिलात-ए-रंग-ओ-बू से बात बनती है
हमीं हम हैं तो क्या हम हैं, तुम्हीं तुम हो तो क्या तुम हो

(चमन = बगीचा), (इख़्तिलात = अनुराग, मेल-जोल), (इख़्तिलात-ए -रंग-ओ-बू = रंग और ख़ुशबू का मेल-जोल)

अंधेरी रात, तूफ़ानी रात, टूटी हुई कश्ती
यही असबाब क्या कम थे के इस पर नाख़ुदा तुम हो

(असबाब = सामान), (नाख़ुदा = नाविक, मल्लाह)

मुबादा और इक फ़ितना बपा हो जाए महफ़िल में
मेरी शामत कहे तुम से के फ़ितनों की बिना तुम हो

(मुबादा = कहीं ऐसा न हो, यह न हो कि), (फ़ितना = उपद्रव, लड़ाई-झगड़ा), (बपा = उपस्थित, कायम)

ख़ुदा बख्शे वो मेरा शौक़ में घबरा के कह देना
किसी के नाख़ुदा होगे मगर मेरे ख़ुदा तुम हो

तुम अपने दिल में खुद सोचो हमारा मुँह न खुलवाओ
हमें मालूम है 'सरशार' के कितने पारसा तुम हो

(पारसा = संयमी, सदाचारी)

-पंडित रतन नाथ धर 'सरशार'

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