Friday, March 18, 2016

दुआ मरने की माँगी ज़ीस्त की ख़्वाहिश निकल आयी

दुआ मरने की माँगी ज़ीस्त की ख़्वाहिश निकल आयी
न जाने कैसे तपती धूप में बारिश निकल आयी

(ज़ीस्त = जीवन, ज़िंदगी)

समझते थे हम अपनी मौत को इक हादसा अब तक
मगर तफ़्तीश में वो क़त्ल की साजिश निकल आयी

चले थे घर से समझा कर बहुत इस दिल को हम, लेकिन
नये मेले में दुनिया के नयी ख़्वाहिश निकल आयी

कहा है ज़िन्दगी ने फिर किसी दिन मिल के बैठेंगे
चलो फिर कुछ मुलाकातों की गुंजाइश निकल आयी

बड़ी मुश्किल से हम घर के लिए कुछ लेने निकले थे
कलेजा चीरती बच्चों की फ़रमाइश निकल आयी

-राजेश रेड्डी

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