Wednesday, March 23, 2016

इतनी मुद्दत बाद मिले हो

इतनी मुद्दत बाद मिले हो
किन सोचों में ग़ुम रहते हो?

इतने ख़ाइफ़ क्यों रहते हो?
हर आहट से डर जाते हो

(ख़ाइफ़ = भयभीत, त्रस्त)

तेज़ हवा ने मुझ से पुछा
रेत पे क्या लिखते रहते हो?

काश कोई हमसे भी पूछे
रात गए तक क्यों जागे हो?

मैं दरिया से भी डरता हूँ
तुम दरिया से भी गहरे हो!

कौन सी बात है तुम में ऐसी
इतने अच्छे क्यों लगते हो?

पीछे मुड़ कर क्यों देखा था
पत्थर बन कर क्या तकते हो?

जाओ जीत का जश्न मनाओ!
मैं झूठा हूँ, तुम सच्चे हो

अपने शहर के सब लोगों से
मेरी खातिर क्यों उलझे हो?

कहने को रहते हो दिल में !
फिर भी कितने दूर खड़े हो

रात हमें कुछ याद नहीं था
रात बहुत ही याद आये हो

हमसे न पूछो हिज्र के किस्से
अपनी कहो अब तुम कैसे हो?

(हिज्र = बिछोह, जुदाई)

'मोहसिन' तुम बदनाम बहुत हो
जैसे हो, फिर भी अच्छे हो

-मोहसिन नक़वी

Ghulam Ali



Dilraj Kaur




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