Wednesday, April 20, 2016

मैं जिधर जाऊं मेरा ख़्वाब नज़र आता है

मैं जिधर जाऊं मेरा ख़्वाब नज़र आता है
अब तआकुब में वो महताब नज़र आता है

(तआक़ुब = पीछा करना), (महताब = चन्द्रमा)

गूंजती रहती हैं साहिल की सदाएं हर दम
और समुन्दर मुझे बेताब नज़र आता है

(साहिल = किनारा)

इतना मुश्किल भी नहीं यार! ये मौजों का सफ़र
हर तरफ़ क्यूँ तुझे गिर्दाब नज़र आता है

(गिर्दाब = भँवर)

क्यूँ हिरासाँ है ज़रा देख ! तो गहराई में
कुछ चमकता सा तहे-आब नज़र आता है

(हिरासाँ = भयभीत, निराश), (तहे-आब = पानी के अंदर)

मैं तो तपता हुआ सहरा हूँ मुझे ख्वाबों में
बे-सबब खित्ता-ए-शादाब नज़र आता है

(सहरा = रेगिस्तान), (खित्ता-ए-शादाब = हरा भरा इलाका)

राह चलते हुए बेचारी तही-दस्ती को
संग भी गौहरे-नायाब नज़र आता है

(तही-दस्ती = ख़ाली हाथ, महरूमी), (संग = पत्थर), (गौहरे-नायाब = नायाब मोती)

ये नए दौर का बाज़ार है आलम साहिब !
इस जगह टाट भी किमख्वाब नज़र आता है

(किमख्वाब = एक प्रकार का बेहद क़ीमती कपड़ा)

-आलम खुर्शीद

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