चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए
मैं तो सूरज हूँ बुझूंगा भी तो जलने के लिए
मंज़िलों ! तुम ही कुछ आगे की तरफ बढ़ जाओ
रास्ता कम है मेरे पाँवों को चलने के लिए
ज़िंदगी अपने सवारों को गिराती जब है
एक मौका भी नहीं देती संभलने के लिए
मैं वो मौसम जो अभी ठीक से छाया भी नहीं
साज़िशें होने लगी मुझको बदलने के लिए
महफ़िल-ए-इश्क़ में शामों की ज़रूरत क्या है
दिल को ही मोम बनाते हैं पिघलने के लिए
ये बहाना तेरे दीदार की चाहत का है
हम जो आते हैं इधर रोज़ टहलने के लिए
-शकील आज़मी
मैं तो सूरज हूँ बुझूंगा भी तो जलने के लिए
मंज़िलों ! तुम ही कुछ आगे की तरफ बढ़ जाओ
रास्ता कम है मेरे पाँवों को चलने के लिए
ज़िंदगी अपने सवारों को गिराती जब है
एक मौका भी नहीं देती संभलने के लिए
मैं वो मौसम जो अभी ठीक से छाया भी नहीं
साज़िशें होने लगी मुझको बदलने के लिए
महफ़िल-ए-इश्क़ में शामों की ज़रूरत क्या है
दिल को ही मोम बनाते हैं पिघलने के लिए
ये बहाना तेरे दीदार की चाहत का है
हम जो आते हैं इधर रोज़ टहलने के लिए
-शकील आज़मी
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