Thursday, April 21, 2016

धूप शिद्दत से रस्तों पे तारी रही

धूप शिद्दत से रस्तों पे तारी रही
ख़्याल में बादलों की सवारी रही

ग़म न अश्कों में ढल पाएँ भूले से भी
उम्र भर दिल पे ये ज़िम्मेदारी रही

वक़्त से दोस्ताना निभाते हुए
ज़िंदगानी से इक जंग जारी रही

जब तलक जेब में चार पैसे रहे
बस तभी तक ये दुनिया हमारी रही

दुश्मनी, दोस्ती, दोस्ती, दुश्मनी
ज़िन्दगी से अजब रिश्तेदारी रही

मीठी-मीठी लगी है कभी धूप भी
और कभी चाँदनी खारी-खारी रही

चाँद-तारों की बस्ती तो देखी, मगर
ये ज़मीं तीन लोकों से न्यारी रही

उम्र भर कारोबारी न हो पाए हम
उम्र भर ज़िन्दगी कारोबारी रही

जो भी होना था आख़िर वो होकर रहा
सब धरी की धरी होशियारी रही

-राजेश रेड्डी

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