Thursday, April 21, 2016

ज़िन्दगी है और मैं हूँ

ज़िन्दगी है और मैं हूँ
बस यही है और मैं हूँ

शोर के दोनों सिरों पर
ख़ामुशी है और मैं हूँ

बंद इक कमरे में बैठी
ख़ुदकुशी है और मैं हूँ

शहर में यादों की तेरी
इक नदी है और मैं हूँ

-आशीष नैथानी 'सलिल'

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