ज़िन्दगी है और मैं हूँ
बस यही है और मैं हूँ
शोर के दोनों सिरों पर
ख़ामुशी है और मैं हूँ
बंद इक कमरे में बैठी
ख़ुदकुशी है और मैं हूँ
शहर में यादों की तेरी
इक नदी है और मैं हूँ
-आशीष नैथानी 'सलिल'
बस यही है और मैं हूँ
शोर के दोनों सिरों पर
ख़ामुशी है और मैं हूँ
बंद इक कमरे में बैठी
ख़ुदकुशी है और मैं हूँ
शहर में यादों की तेरी
इक नदी है और मैं हूँ
-आशीष नैथानी 'सलिल'
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