Friday, April 29, 2016

पाओं में छाले, थकन ज़िस्म पे छाई हुई है

पाओं में छाले, थकन ज़िस्म पे छाई हुई है
आज भी बस यही दिन भर की कमाई हुई है

दर्द को ज़ब्त की तहज़ीब सिखाई हुई है
मकतब-ए-इश्क़ में इस दिल की पढ़ाई हुई है

(मकतब-ए-इश्क़ = प्यार की पाठशाला)

मौत तो जाने कहाँ मर गयी आते-आते
ज़िन्दगी है कि मेरी जान को आई हुई है

ग़म वो बेटा जो रुलाता है लहू के आंसू
और ख़ुशी अपनी वो बेटी जो पराई हुई है

फड़फड़ाता रहे लाख अपने परों को कोई
मौत से पहले भला किसकी रिहाई हुई है

ज़हर पीकर भी तेरे हाथ से ज़िंदा रहे हम
ज़हर में जैसे दवा कोई मिलाई हुई है

है ज़माने में उसी बात का चर्चा हरसू
हमने जो बात ज़माने से छुपाई हुई है

रास आने लगी हमको भी अब अपनी दुनिया
जाने ये झूठी खबर किसकी उड़ाई हुई है

-राजेश रेड्डी

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