Wednesday, May 25, 2016

विपश्यना के दोहे

जागो लोगों जगत के बीती काली रात
हुआ उजाला धर्म का मंगल हुआ प्रभात

आते-जाते सांस का, रहे निरन्तर ध्यान
मन सुधरे मंगल सधे, होय परम कल्याण

धरम न हिन्दू बौद्ध है, सिक्ख न मुस्लिम जैन
धरम चित्त की शुद्धता, धरम शांति सुख चैन

यही धर्म की परख है यही धर्म का माप
जन जन का मंगल करे दूर करे संताप

निर्धन या धनवान हो अनपढ़ या विद्वान
जिसने मन मैला किया उसके व्याकुल प्राण

हिन्दू हो या बौद्ध हो मुस्लिम हो या जैन
जब जब मन मैला करे तब तब हो बैचैन

तीन बात बंधन बंधे राग द्वेष अभिमान
तीन बात बंधन खुले शील समाधी ज्ञान

वाणी तो वश में भली वश में भला शरीर
जो वश में मन करे वोही सच्चा वीर

अपने अपने कर्म के, हम ही तो करतार
अपने सुख के दुःख के, हम ही जिम्मेदार

जब तक मन में राग है जब तक मन में द्वेष
तब तक दुःख ही दुःख है मिटे न मन का क्लेश

क्षण-क्षण, क्षण-क्षण बीतते, जीवन बीता जाए
क्षण-क्षण का उपयोग कर, बीता क्षण नहीं आये

मानव का जीवन मिला, धर्म मिला अनमोल
अब श्रद्धा से यत्न से, मन की गाँठें खोल

मानव जीवन रत्न सा, किया व्यर्थ बर्बाद
चर्चा करली धर्म की, चाख न पाया स्वाद

सांस देखते-देखते, सत्य प्रगटता जाय
सत्य देखते-देखते, परम सत्य दिख जाय

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