Saturday, May 7, 2016

पराई कोठियों में रोज संगमरमर लगाता है

पराई कोठियों में रोज संगमरमर लगाता है
किसी फुटपाथ पर सोता है लेकिन घर बनाता है

लुटेरी इस व्यवस्था का मुझे पुरजा बताता है
वो संसाधन गिनाता है तो मुझको भी गिनाता है

बदलना चाहता है इस तरह शब्दों व अर्थों को
वो मेरी भूख को भी अब कुपोषण ही बताता है

यहाँ पर सब बराबर हैं ये दावा करने वाला ही
उसे ऊपर उठाता है मुझे नीचे गिराता है

मेरे आज़ाद भारत में जिसे स्कूल जाना था
वो बच्चा रेल के डिब्बों में अब झाड़ू लगाता है

तेरे नायक तो नायक बन नहीं सकते कभी 'बल्ली'
कोई रिक्शा चलाता है तो कोई हल चलाता है

-बल्ली सिंह चीमा 

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