पराई कोठियों में रोज संगमरमर लगाता है
किसी फुटपाथ पर सोता है लेकिन घर बनाता है
लुटेरी इस व्यवस्था का मुझे पुरजा बताता है
वो संसाधन गिनाता है तो मुझको भी गिनाता है
बदलना चाहता है इस तरह शब्दों व अर्थों को
वो मेरी भूख को भी अब कुपोषण ही बताता है
यहाँ पर सब बराबर हैं ये दावा करने वाला ही
उसे ऊपर उठाता है मुझे नीचे गिराता है
मेरे आज़ाद भारत में जिसे स्कूल जाना था
वो बच्चा रेल के डिब्बों में अब झाड़ू लगाता है
तेरे नायक तो नायक बन नहीं सकते कभी 'बल्ली'
कोई रिक्शा चलाता है तो कोई हल चलाता है
-बल्ली सिंह चीमा
किसी फुटपाथ पर सोता है लेकिन घर बनाता है
लुटेरी इस व्यवस्था का मुझे पुरजा बताता है
वो संसाधन गिनाता है तो मुझको भी गिनाता है
बदलना चाहता है इस तरह शब्दों व अर्थों को
वो मेरी भूख को भी अब कुपोषण ही बताता है
यहाँ पर सब बराबर हैं ये दावा करने वाला ही
उसे ऊपर उठाता है मुझे नीचे गिराता है
मेरे आज़ाद भारत में जिसे स्कूल जाना था
वो बच्चा रेल के डिब्बों में अब झाड़ू लगाता है
तेरे नायक तो नायक बन नहीं सकते कभी 'बल्ली'
कोई रिक्शा चलाता है तो कोई हल चलाता है
-बल्ली सिंह चीमा
No comments:
Post a Comment