साया सा इक ख़याल की पहनाइयों में था
साथी कोई तो रात की तन्हाइयों में था
(पहनाइ = विस्तार, विशालता)
हर ज़ख्म मेरे जिस्म का मेरा गवाह है
मैं भी शरीक अपने तमाशाइयों में था
गैरों की तोहमतों का हवाला बजा मगर
मेरा भी हाथ कुछ मिरी रुसवाइयों में था
(बजा = उचित, मुनासिब, ठीक)
टूटे हुए बदन पे लकीरों के जाल थे
क़रनों का अक्स उम्र की परछाइयों में था
(क़रनों = युगों)
गिर्दाब-ए-ग़म से कौन किसी को निकालता
हर शख़्स ग़र्क अपनी ही गहराइयों में था
(गिर्दाब-ए-ग़म = दुखों का भँवर), (ग़र्क = डूबा हुआ)
नग़मों की लय से आग सी दिल में उतर गई
सुर रुख़सती के सोज़ का शहनाइयों में था
(रुख़सती = रवानगी, प्रस्थान), (सोज़ = जलन, तपिश,कष्ट, दुःख)
'रासिख़' तमाम गाँव के सूखे पड़े थे खेत
बारिश का ज़ोर शहर की अँगनाइयों में था
-रासिख़ इरफ़ानी
साथी कोई तो रात की तन्हाइयों में था
(पहनाइ = विस्तार, विशालता)
हर ज़ख्म मेरे जिस्म का मेरा गवाह है
मैं भी शरीक अपने तमाशाइयों में था
गैरों की तोहमतों का हवाला बजा मगर
मेरा भी हाथ कुछ मिरी रुसवाइयों में था
(बजा = उचित, मुनासिब, ठीक)
टूटे हुए बदन पे लकीरों के जाल थे
क़रनों का अक्स उम्र की परछाइयों में था
(क़रनों = युगों)
गिर्दाब-ए-ग़म से कौन किसी को निकालता
हर शख़्स ग़र्क अपनी ही गहराइयों में था
(गिर्दाब-ए-ग़म = दुखों का भँवर), (ग़र्क = डूबा हुआ)
नग़मों की लय से आग सी दिल में उतर गई
सुर रुख़सती के सोज़ का शहनाइयों में था
(रुख़सती = रवानगी, प्रस्थान), (सोज़ = जलन, तपिश,कष्ट, दुःख)
'रासिख़' तमाम गाँव के सूखे पड़े थे खेत
बारिश का ज़ोर शहर की अँगनाइयों में था
-रासिख़ इरफ़ानी
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल ... कमाल के शेर ... जिंदाबाद ...
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